उत्तर प्रदेशलखनऊ

Basti News: ग्रीन बेल्ट का चक्कर… हाईवे के किनारे न बिक पा रही जमीन, न हो रहे निर्माण

फोरलेन के मध्य से दोनों तरफ 87.5 मीटर चौड़ाई में घोषित है ग्रीन बेल्ट, निर्माण प्रतिबंधित

महायोजना 2031 में ग्रीन बेल्ट का दायरा घटाने का था प्रस्ताव, अभी नहीं मिली मंजूरी

बस्ती। बीडीए परिक्षेत्र में हाईवे के किनारे की जमीनों पर संकट के बादल छाए हैं। यहां न तो जमीन बिक पा रही है और न ही पक्के निर्माण हो पा रहे हैं। ग्रीन बेल्ट के चक्कर में पांच साल से हाईवे के दोनों किनारे की जमीनें उलझी हुई हैं। यहां निर्माण प्रतिबंधित है। इस वजह से इनकी खरीद-फरोख्त नहीं हो पा रही है। कुछ काश्तकार अपनी जमीनों को बैनामा करने के बजाय लीज पर देना शुरू कर दिए हैं। स्थाई निर्माण की जगह टिन शेड के निर्माण में होटल, ढाबा आदि का कारोबार चल रहा है।

बीडीए एक्ट के अनुसार बस्ती-गोरखपुर हाईवे पर फोरलेन के मध्य से दोनों तरफ 87.5 मीटर चौड़ाई में निर्माण नहीं किया जा सकता है। बीडीए की ओर से इस दायरे में मानचित्रों को स्वीकृति नहीं दी जा रही है। कटया के पास से लेकर परसा चौराहे तक करीब दस किमी की लंबाई में हाईवे के किनारे की जमीन खाली पड़ी है। वर्ष 2021 के पहले जिन्होंने निर्माण करा लिया है, उन्हें फिलहाल इस समस्या से मुक्ति मिली हुई है। इसके बाद जिन्होंने निर्माण करने की ठानी उन्हें अनुमति नहीं मिली।

 

कुछ लोगों ने नियमों की अनदेखी कर निर्माण कराया तो कुछ उलझने से अच्छा निर्माण से ही तौबा कर लिए। इससे बेशकीमती जमीनों पर वीरानी छाई हुई है। उम्मीद थी कि महायोजना 2031 में हाईवे के किनारे के काश्तकारों को कुछ सहूलियत मिलेगी। क्योंकि नए मास्टर प्लान में ग्रीन बेल्ट का दायरा घटाए जाने का प्रस्ताव शामिल किया गया था। इसमें फोरलेन सड़क के मध्य से 57.5 मीटर चौड़ाई तक ग्रीन बेल्ट शामिल किया गया है। इस तरह कुल 30 मीटर का दायरा घटाने का प्रस्ताव किया गया है। मगर, महायोजना 2031 को शासन से मंजूरी नहीं मिल सकी है। इस वजह से ग्रीन बेल्ट का पुराना मानक प्रभावी है।

फोरलेन 75 मीटर, इसके बाद है ग्रीन बेल्ट

एनएचएआई के अधीन फोरलेन की कुल चौड़ाई 75 मीटर है। सड़क के मध्य से 37.5 मीटर दोनों तरफ सड़क के लिए जमीन अधिग्रहित है। इसके बाद 50 मीटर चौड़ाई में ग्रीन बेल्ट घोषित है। यानी काफी बड़ा भू-भाग इस मानक की वजह से प्रभावित है। नए प्रस्ताव ग्रीन बेल्ट की चौड़ाई 50 मीटर से घटाकर 20 मीटर की गई है। कुल 30 मीटर का दायरा कम किया गया है। मगर, इसे मंजूरी मिले तभी कुछ बात बन सकती है। तब तक पुराने मानक के अनुसार ही निर्माण किया जा सकता है।

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काश्तकार नहीं बेच पा रहे जमीन

हाईवे के किनारे के काश्तकार जरूरत के बाद भी अपनी जमीन नहीं बेच पा रहे हैं। कहने को तो हाईवे की बेश्कीमती जमीन बताई जा रही है। मगर, जब लोग गहराई से छानबीन करते हैं तो यह ग्रीन बेल्ट की जमीन निकल रही है। ग्रीन बेल्ट का मानक जानने के बाद लोग कौड़ी के भाव भी जमीन लेने को राजी नहीं हो रहे हैं। इससे बैनामा भी प्रभावित हुआ है। हाईवे के किनारे की जमीनों की मालियत ज्यादा होने की वजह से इसकी बिक्री पर पंजीयन शुल्क एवं स्टांप ड्यूटी के रूप में भारी भरकम राजस्व की प्राप्ति होती। मगर, हाईवे के किनारे अधिकतर भू- खंडों की रजिस्ट्री नहीं हो पा रही है।

लोगों ने बदल दिया निर्माण का पैटर्न

ग्रीन बेल्ट के चक्कर में अनुपयोगी हो चुकी जमीनों के उपयोग का पैटर्न बदल दिया गया है। काश्तकारों ने इस दायरे में आने वाली जमीनों को बेचने के बजाय 5- 10 साल के लिए लीज पर देना शुरू कर दिए हैं। यहां होटल, ढाबा के लिए टिन शेड के अस्थाई निर्माण कराए जा रहे हैं। इसमें होटल, ढाबा, रेस्तरां अदि संचालित किए जा रहे हैं।

 

ग्रीन बेल्ट में हो गए हैं आधा दर्जन निर्माण

बड़ेवन से लेकर हड़िया चौराहे के मध्य ग्रीन बेल्ट में आधा दर्जन पक्के निर्माण हो गए हैं। पिछले दिनों कुछेक जगहों पर बीडीए अधिकारियों और जमीन मालिकों से विवाद भी सामने आया। बावजूद इसके निर्माण कर लिए गए । इसमें आधा दर्जन भवन ग्रीन बेल्ट में है। कुछ वाहनों के शोरूम भी शामिल है, जो ग्रीन बेल्ट के दायरे में बने हैं। मगर यहां कार्रवाई नहीं हो पा रही है।

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कोट

महायोजना- 2021 के हिसाब से निर्धारित ग्रीन बेल्ट का मानक अब भी प्रभावी है। इसमें निर्माण प्रतिबंधित है। ग्रीन बेल्ट की जमीनों पर मानचित्र नहीं स्वीकृति किए जा रहे हैं। मानक का पालन कराने के निर्देश दिए गए हैं। महायोजना 2031 जब लागू होगा तब नए मानक अमल में लाए जाएंगे।

-अंद्रा वामसी, डीएम

 

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