अन्यधर्म-आस्था

मनुष्य, उठ, जाग, यह जीवन वरदान है,

मनुष्य, तू क्या समझे इस जीवन का मोल

मनुष्य जीवन का वास्तविक अर्थ

 

मनुष्य, तू क्या समझे इस जीवन का मोल,

यह तो है आत्मा का परम ध्येय, एक अनमोल।

न ये सिर्फ रोटी-कपड़ा कमाने के लिए,

न इसे भौतिक दौलत में गंवाने के लिए।

 

ये जन्म मिला है बंधनों को तोड़ने को,

मोह-माया की कैद से आज़ाद होने को।

यहाँ हर सांस है तुझसे कुछ कहने को,

हर पल है तुझे सत्य से जोड़ने को।

 

क्या लाएगा संसार का यह स्वार्थमय खेल?

जहाँ अंत में सब हो जाएगा केवल ढेल।

तेरी दौलत, तेरा यश, तेरा घमंड,

सब छूट जाएगा एक पल में अचंभ।

 

आओ, करुणा और प्रेम का दीप जलाएं,

इस जीवन को सत्य के पथ पर चलाएं।

न मंदिरों में घंटी, न मस्जिदों की सदा,

सच्ची पूजा है, जब आत्मा परमात्मा से मिला।

 

जो दुःख है संसार में, उसे समझ,

हर आह, हर क्रंदन, हर मूक वेदना को सुन।

यह जीवन मिला है सिर्फ तेरे लिए नहीं,

पर दूसरों के आंसुओं को पोछने के लिए सही।

 

परमात्मा तुझमें है, यह पहचान अभी,

क्यों ढूंढे उसे बाहर, वह तो तेरी रगों में बसी।

जन्म-जन्म के बंधन तेरे कर्मों के लेख,

छोड़ दे मोह, जला दे हर पाप की रेख।

 

आओ, इस जीवन को सार्थक करें,

प्रेम, करुणा, और सत्य से भरें।

जब अंतिम सांस हो, तो यह न हो पछतावा,

कि तूने जीवन व्यर्थ किया, और पाया घाव।

 

मनुष्य, उठ, जाग, यह जीवन वरदान है,

यह आत्मा और परमात्मा का संगम स्थान है।

मनुष्य जीवन का वास्तविक अर्थ

मनुष्य, तू क्या समझे इस जीवन का मोल,
यह तो है आत्मा का परम ध्येय, एक अनमोल।
न ये सिर्फ रोटी-कपड़ा कमाने के लिए,
न इसे भौतिक दौलत में गंवाने के लिए।

ये जन्म मिला है बंधनों को तोड़ने को,
मोह-माया की कैद से आज़ाद होने को।
यहाँ हर सांस है तुझसे कुछ कहने को,
हर पल है तुझे सत्य से जोड़ने को।

क्या लाएगा संसार का यह स्वार्थमय खेल?
जहाँ अंत में सब हो जाएगा केवल ढेल।
तेरी दौलत, तेरा यश, तेरा घमंड,
सब छूट जाएगा एक पल में अचंभ।

आओ, करुणा और प्रेम का दीप जलाएं,
इस जीवन को सत्य के पथ पर चलाएं।
न मंदिरों में घंटी, न मस्जिदों की सदा,
सच्ची पूजा है, जब आत्मा परमात्मा से मिला।

जो दुःख है संसार में, उसे समझ,
हर आह, हर क्रंदन, हर मूक वेदना को सुन।
यह जीवन मिला है सिर्फ तेरे लिए नहीं,
पर दूसरों के आंसुओं को पोछने के लिए सही।

परमात्मा तुझमें है, यह पहचान अभी,
क्यों ढूंढे उसे बाहर, वह तो तेरी रगों में बसी।
जन्म-जन्म के बंधन तेरे कर्मों के लेख,
छोड़ दे मोह, जला दे हर पाप की रेख।

आओ, इस जीवन को सार्थक करें,
प्रेम, करुणा, और सत्य से भरें।
जब अंतिम सांस हो, तो यह न हो पछतावा,
कि तूने जीवन व्यर्थ किया, और पाया घाव।

मनुष्य, उठ, जाग, यह जीवन वरदान है,
यह आत्मा और परमात्मा का संगम स्थान है।

राकेश कुमार प्रजापति

 

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