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अंग्रेजी नववर्ष एवम् हिन्दी नववर्ष में अंतर

एक तरफ ठिठुरन तो दूसरी ओर सुरो का सरगम

Happy New year

घड़ी की टिक-टिक और बारह बजे रात,
जनवरी की ठंड में जग का नया प्रभात।
शहरों में शोर, आतिशबाजी का संग,
पर भीतर के सन्नाटे का कोई नहीं रंग।

क्या ये नववर्ष सच में खास है?
क्या इसमें प्रकृति का कोई मधुमास है?
क्या इसमें जीवन का संगीत झूमता है?
या बस यह पश्चिम की छाया में घुलता है?

जब आए चैत्र, हरियाली मुस्कुराए,
सूरज की किरणें नई राह दिखाए।
हवा में हो कोयल की मीठी तान,
यही है नववर्ष, जीवन का वरदान।

पेड़ों पर कोंपलें, फूलों की महक,
खेतों में लहराए फसलें सुनहरी चमक।
यह केवल दिन नहीं, ऋतु का है संगम,
हर जीव के लिए यह है नवजीवन का क्रम।

यह दिन है जब ब्रह्मा ने सृष्टि रचाई,
राम ने राज्याभिषेक से मर्यादा समझाई।
हर युग ने इस दिन को पूज्य बनाया,
हर दिल ने इसे नव ऊर्जा से सजाया।

अंग्रेजी नववर्ष में ठंड का आलम,
न प्रकृति, न उत्सव, बस बाहरी जनसम्पर्क।
पर हिंदू नववर्ष है धरती का जयकार,
संस्कृति, परंपरा और जीवन का विचार।

तो क्यों न मनाएं इस पर्व को खास,
जहां प्रकृति का हर कोना गाए नया राग।
अंग्रेजी नववर्ष को दें अपनी बधाई,
पर हिंदू नववर्ष में हो सच्चाई की परछाई।

यह नववर्ष नहीं बस समय का बदलना,
यह है जीवन को नए रंग में ढलना।

राकेश कुमार प्रजापति
शिक्षक

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