उत्तर प्रदेशलखनऊ

धरोहर: अंग्रेजों ने रेत पर पुल बनाकर पांच किमी मोड़ी नदियों की धारा..दौड़ा दी ट्रेन

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मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह ने कहा कि छोटी लाइन बुक को एक कॉफी टेबल बुक के रूप में लाया जा रहा है। इसमें पूर्वोत्तर रेलवे के 150 वर्षों में आए बदलाव की कहानी है। नए वर्ष में इसका विमोचन किया जाएगा। इसका नार्मल बुक स्वरूप भी तैयार किया जाएगा।

तकरीबन 127 साल पहले पूर्वोत्तर रेलवे ( बंगाल एंड नार्थ वेस्टर्न) में अंग्रेजों ने दो नदियों पर रेल ब्रिज बनाने के लिए पहली बार एक अद्भुत प्रयोग किया था।

घाघरा और कोसी (चौका) नदी के बीच दो पुल की जगह एक पुल बनाकर ट्रेन दौड़ा दी थी। इसके लिए पहले रेत पर पुल बनाया गया और बाद में नदी की धारा को पांच किलोमीटर पहले मोड़ दिया गया।

 

 

पूर्वोत्तर रेलवे की प्रकाशित नई पुस्तक छोटी लाइन

ए जर्नी ऑफ ट्रांसफार्मेशन में इंजीनियरिंग के इस प्रयोग का जिक्र किया गया है। इस पुस्तक का निर्देशन पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह ने किया है। इसमें 1875 से 2023 तक रेलवे के इतिहास का जिक्र है। इसी में एक अध्याय ब्रिज पर है। इसमें एल्गिन ब्रिज के निर्माण को लेकर रोचक पहलुओं का जिक्र है।

इस पुल का नाम लॉर्ड एल्गिरन के नाम पर रखा गया था, जो वायसराय थे। रेलवे के अधिकारियों ने पुल को बनाने के पहले दो साल तक सर्वे किया। सूखे क्षेत्र को चिह्नित किया गया। फिर घाघरा नदी पर 3695 फीट लंबे पुल को तैयार किया गया, जिसकी लागत उस दौरान 30.75 लाख रुपये आई थी। 61 मीटर लंबाई में 17 गर्डर लगाए गए। सुरक्षा की दृष्टि से 1966-67 में गर्डर को फिर बदल दिया गया।

 

एलाइनमेंट नहीं मिलने पर पांच किमी पहले जगह देखा

चौका नदी और घाघरा पर ब्रिज को बनाना था। रेल लाइन के लिए सर्वे किया गया। दोनों नदियों के बीच लाइन का एलाइनमेंट नहीं मिल रहा था। इसके बाद इंजीनियरों की टीम ने सर्वे कर देखा तो पांच किलोमीटर पहले ब्रिज के लिए एलाइनमेंट मिल गया। इसके बाद अधिकारियों ने ब्रिज बनाने का निर्णय लिया।

 

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