अम्बेडकरनगरउत्तर प्रदेशराज्य
जिले में नहीं थम रहा अज्ञात लाशे मिलने का सिलसिला
जनपद अंबेडकर नगर लाशे ठिकाने लगाने का बनर ठिकाना

दैनिक जस्ट एक्शन
मुकुल कुमार गौतम जिला क्राइम रिपोर्टर
- अम्बेडकरनगर
जिले के विभिन्न थाना क्षेत्रों में अज्ञात शव मिलने का सिलसिला थम नहीं रहा है।आए दिन लावारिस लाशों के मिलने का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है। वहीं दूसरी ओर सवाल पूछा जा रहा है कि लावारिस लाशों के गुनाहगारों को कब सजा मिलेगी। ऐसे अनेक केस हैं जिनमें गुनाहगारों को सजा तो दूर अभी केस का खुलासा तक नहीं हो सका है। कई मामलों में केस का खुलासा भी छोड़िये लावारिस लाशाें की पहचान तक नहीं हाे सकी है। इस सिलसिले ने ही अम्बेडकरनगर को लावारिस लाशों का डंपिंग ग्राउंड बनाकर रख दिया है। दरअसल हो यह रहा है कि दूसरे शहरों में हत्या जैसी जघन्य वारदातों काे अंजाम देने के बाद जिनको मारा जाता है उनकी लाश ठिकाने लगाने के लिए अम्बेडकरनगर ही ठिकाना बना हुआ है।लावारिस लाशों की यदि बात की जाए तो इसकी फेरिस्त बहुत लंबी है।ऐसे केसों की जहां तक बात है तो ज्यादातर में पुलिस दिलचस्पी दिखाने के टालमटोल करती नजर आती है। लावारिस लाशों की शिनाख्त कराना और वारदात के गुनाहगारों तक पहुंचना कोई आसान काम नहीं होता। सबसे बड़ी मुसीबत व ऊबाऊ भर तो अज्ञात शवों की शिनाख्त करना होता है। इसके लिए सालों गुजर जाते हैं। जब तक शिनाख्त होती है तब तक थाने में काफी कुछ बदल चुका होता है। फाइल पर धूल चढ़ जाती है। ऐसे मामलों की वैसे तो लंबी फेरिस्त हैं।कई लावारिस लाशें जिले की सीमा से लगने वाले थाना क्षेत्रों मे मिलीं। पहचान छिपाने के उद्देश्य से शव को भी क्षत-विक्षत कर दिया जाता है। इन शवों की शिनाख्त पुलिस के लिए पहेली बनकर रह जाती है और हत्यारे पुलिस की पकड़ से दूर बने रहते हैं।
वारदात कहीं, लाश कहीं, शिनाख्त कहीं और रिपोर्ट कहीं
पुलिस के पास काम का बोझ अधिक होने या फिर बिना किसी दबाव के अधिकारी या जांच अधिकारी कोई जिम्मेदारी नहीं लेता। लावारिश लाशों वाले केस में अमूमन तहकीकात करने पर पता चलता है कि वारदात को कहीं दूसरी जगह पर अंजाम दिया जाता है। लाश कहीं दूसरी जगह फेंकी जाती है। इतना ही नहीं अगर लाश की शिनाख्त हो गई, तो उसकी भी जगह बदली होती है। इतना सब कुछ होने के बाद गुमशुदगी की रिपोर्ट कहीं दूसरे थाने में दर्ज होती है। परिणाम यह होता है कि कानूनी बारिकियां और जटिलताओं के कारण केस अपने आप ही कमजोर हो जाता है। बाकी रही सही कसर पुलिस की जांच पूरी कर देती है। जिससे लावारिश लाश को पूरा न्याय नहीं मिल पाता। जब जिम्मेदार अधिकारी से वार्ता की गई तो उनके द्वारा बताया गया लावारिश लाशों की पहचान के पूरे प्रयास पुलिस की तरफ से किए जाते हैं। संबंधित जिलों और ऑफिशियली वेबसाइट पर भी फोटो अपलोड किए जाते हैं। अधिकांश की पहचान हो जाती है।