अयोध्याउत्तर प्रदेशधर्म-आस्थाराज्य

संपत्ति और धन से ज्यादा भाई को प्रेम करना चाहिए।

भाई से प्रेम रखने वाले उनके परिवार की तरक्की होती है

तारुन अयोध्या
भगवान राम ने छोटे भाई भरत के लिए राज त्यागा और वन गमन किया। उन्होंने कहा कि भाइयों को संपत्ति और धन से ज्यादा भाई को प्रेम करना चाहिए। अगर भाइयों में प्रेम होगा तो परिवार तरक्की के रास्ते पर चलता रहेगा। यह उद्गार सागर पुर में काली जी के स्थान पर पूर्व मंत्री अवधेश कुमार पाण्डेय व ठाकुर प्रसाद पाण्डेय के संयोजन में चल रही श्री राम कथा के अंतिम विश्राम दिवस के दिन राष्ट्रीय कथा व्यास डॉक्टर दुर्गादास जी महाराज ने कहा। कथा में आगे कहा की ननिहाल से अयोध्या आने पर जब भरत जी को माता कैकेयी के कारण भ्राता राम के वन गमन, पिता दशरथ के स्वर्गवास और स्वयं के राज्याभिषेक की जानकारी हुई तो उन्होंने तत्काल राम जी के साथ हुए अन्याय का विरोध किया और न सिर्फ राजगद्दी का त्याग किया अपितु आजीवन अपनी माता को माँ शब्द से संबोधित न करने का व्रत लिया। उन्होंने पुत्र धर्म का निर्वहन करते हुए पिता दशरथ का अंतिम संस्कार किया और मुनि वशिष्ठ, सुमंत सहित माताओं और अयोध्या वासियों के साथ भ्राता राम जी को पुनः अयोध्या लाने हेतु चित्रकूट प्रस्थान किया। पिता के वचन से बधे राम जी के वापस न आने पर उनकी चरण पादुका को सिहांसन पर रखकर राज्य का संचालन किया। ये सोचकर कि राम जी वन में जमीन पर सोते होंगे भरत जी ने राज परिवार से निकलकर नंदीग्राम में कुटिया बनाई और वनवासी की भांति जीवन व्यतीत करते हुए जमीन में एक फुट गढ्ढा करवाकर उसमें शयन किया जिससे वे राम जी के नीचे सो सकें। कथा के माध्यम से बताया कि भरत जी त्याग के प्रतिमूर्ति हैं, अन्याय के विरोधी हैं। उनका जीवन धन्य है, वे अद्वितीय हैं और उनका चरित्र सदैव धारण करने के योग्य है। कथा में,रमाकांत पाण्डेय, राज कुमार पांडेय,उपेंद्र तिवारी, अजीत पाण्डेय,बृज मोहन पाण्डेय,परमानन्द पाण्डेय, सहित समस्त ग्राम वासी मौजूद रहे।

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