उत्तर प्रदेशलखनऊ

पत्नी के नाम जमीन या मकान की रजिस्ट्री कराने से पहले जान लें High Court का बड़ा फैसला

Allahabad High Court Decision- आए दिन प्रोपर्टी बेचने या बंटवारे को लेकर वाद-विवाद होने लगते है. अकसर लोग पत्नी के नाम पर जमीन खरीद लेते है जब बात बेचने और मालिकाना हक की आती है तो वाद-विवाद शुरू हो जाते है. ऐसे में रजिस्ट्री करवाने से पहले जरूर जान लें. हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट इस मामले में एक अहम फैसला सुनाया है तो आइए जानते है कोर्ट के इस फैसले के बारें में…

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पारिवारिक संपत्ति विवाद में एक अहम फैसला सुनाया है और कहा है कि अगर किसी शख्स ने अपनी पत्नी के नाम पर कोई संपत्ति खरीदी है.

और रजिस्ट्री करवाई है, तो उसमें उसके परिजनों का भी हिस्सा होगा। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि परिजनों का उस संपत्ति पर तभी अधिकार नहीं माना जाएगा.

जब यह साबित होगा कि महिला ने अपनी कमाई से वह संपत्ति खरीदी है लेकिन अगर महिला गृहिणी है और उसके नाम पर कोई संपत्ति खरीदी गई है तो उस पर परिवार के बाकी सदस्यों का भी अधिकार होगा।

मृत पिता द्वारा मां के नाम खरीदी गई संपत्ति में बेटे ने मांगा हक- 

एक मृत पिता की संपत्ति में अधिकार की मांग करने वाले एक बेटे की याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा कि याचिकाकर्ता के पिता द्वारा खरीदी गई संपत्ति को पारिवारिक संपत्ति माना जाएगा क्योंकि सामान्यत: एक हिंदू पति परिवार के लाभ के लिए अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदता है।

इस स्थिति में पति होगा संपत्ति का मालिक-

कोर्ट ने कहा, “जब तक यह साबित न हो जाए कि संपत्ति पत्नी द्वारा अर्जित आय की रकम से खरीदी गई थी, इसे पति द्वारा अपनी आय से खरीदी गई संपत्ति माना जाएगा और इस पर परिवार का भी अधिकार होगा।”

बेटे ने अपने मृत पिता द्वारा माता के नाम खरीदी गई संपत्ति में मांगा एक चौथाई हिस्सा-

TOI की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिका के अपीलकर्ता सौरभ गुप्ता ने एक सिविल मुकदमा दायर कर अपने पिता द्वारा खरीदी गई संपत्ति में एक चौथाई हिस्से की मांग की थी और कोर्ट से उस संपत्ति में सह-हिस्सेदार घोषित करने की मांग की थी।

उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि संपत्ति उनके मृत पिता द्वारा खरीदी गई थी, इसलिए अपनी मां के साथ वह भी उस संपत्ति में सह-हिस्सेदार हैं। सौरभ गुप्ता की मां इस मुकदमे में प्रतिवादी थी।

याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि चूंकि संपत्ति उसकी मां यानी मृत पिता की पत्नी के नाम पर खरीदी गई है, इसलिए उस संपत्ति को तीसरे पक्ष को हस्तांतरित किया जा सकता है, इसलिए कोर्ट से तीसरे पक्ष को संपत्ति हस्तांतरित ना करने के लिए निषेधाज्ञा की भी मांग की।

महिला के पति ने उपहार में दी थी संपत्ति-

मामले में प्रतिवादी और याचिकाकर्ता की मां ने एक लिखित बयान में कोर्ट को बताया कि संपत्ति उनके पति ने उन्हें उपहार में दी थी क्योंकि उनके पास आय का कोई अलग स्रोत नहीं था।

बता दें कि इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने अंतरिम निषेधाज्ञा के आवेदन को खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ बेटे ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

15 फरवरी के अपने फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसी संपत्ति प्रथम दृष्टया संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति बन जाती है, जिस पर परिवार के हरेक सदस्य का अधिकार होता है।

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