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बृजनन्दन राजू को मिला साहित्य गौरव सम्मान

लखनऊ। सक्रिय रूप से सामाजिक समरसता के क्षेत्र में कार्यरत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता बृजनन्दन राजू को साहित्य गौरव सम्मान 2025 प्रदान किया गया। यह सम्मान साहित्यकारों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय साहित्य परिषद की ओर से वृन्दावन में आयोजित सर्व भाषा साहित्यकार सम्मान समारोह में प्रदान किया गया।

साहित्य परिषद की ओर से प्रतिवर्ष अलग—अलग भाषा व बोलियों पर कार्य करने वाले साहित्यकारों को यह सम्मान प्रदान किया जाता है।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर,सह संगठन मंत्री मनोज,साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुशील चन्द्र ‘मधुपेश’ व अक्षय पात्र आश्रम के महामण्डलेश्वर अनन्त वीर्य महाराज की पावन उपस्थिति में बृजनन्दन राजू को अंग वस्त्रम,श्रीफल,प्रतीक चिन्ह व सम्मान पत्र प्रदान किया गया। बृजनन्दन राजू विगत 15 वर्षों से पत्रकारिता में हैं।

बृजनन्दन राजू ने लिखी है ‘जनता सर्वोपरि’ पुस्तक

इनकी योगी सरकार के कार्यों पर आधारित ‘जनता सर्वोपरि’ और मोदी सरकार के कार्यों पर आधारित ‘स्वर्णिम भारत की ओर’ पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। इसके अलावा लघु पुस्तिका समरसता पाथेय का प्रकाशन व कई विशेषांकों का सम्पादन किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़कर 22 वर्षों से अधिक समय से समाज जागरण में सक्रिय हैं। प्रचार विभाग से लम्बे समय से जुड़े हैं। पत्रकारिता के साथ ही सामाजिक कार्यों एवं सांस्कृतिक उन्नयन के बारे में लिखने में रूचि रखते हैं। वंचित समाज के उत्थान के लिए चलाये जा रहे सेवा प्रकल्पों पर विशेष रिपोर्टिंग की है।

अवध के सात साहित्यकारों को मिला सम्मान

अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डा. पवनपुत्र बादल ने बताया कि वृन्दावन में आयोजित कार्यक्रम में कौरवी भाषा,ब्रज भाषा,हिन्दी खड़ी बोली,अवधी भाषा,बुन्देली भाषा तथा भोजपुरी के साहित्यकारों को सम्मान प्रदान किया गया। लखनऊ से बृजनन्दन राजू के अलावा डा. बलजीत श्रीवास्तव विजय त्रिपाठी को साहित्य गौरव सम्मान प्रदान किया गया है। इसी तरह अवध प्रान्त में आने वाले प्रोफेसर हरि शंकर मिश्र,डा.उमा शंकर शुक्ल,डा.रश्मि शील और सर्वेश ​पाण्डेय को साहित्य गौरव सम्मान प्रदान किया गया है।

बृजनन्दन राजू ने कहा कि प्रेम व भक्ति रस से सराबोर ब्रज भूमि वृन्दावन में पूज्य संतों व छ: प्रान्तों के मूर्धन्य साहित्यकारों की उपस्थिति में मुझे यह सम्मान दिया गया। इसके लिए साहित्य परिषद का ह्रदय से आभार प्रकट करता हूं। भगवान श्रीकृष्ण ने वृन्दावन की भूमि पर ही दिव्य लीलाएं की हैं। वृन्दावन का कण-कण रसमय है। वृन्दावन श्री राधिका रानी जी का निज धाम है। श्री वृन्दावन को सभी धामों से ऊपर और सभी तीर्थों से श्रेष्ठ माना गया है। इस भूमि ने मुझे आत्मबोध कराया है।

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