उत्तर प्रदेशलखनऊ

हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी: कानूनी प्रक्रिया से धर्म परिवर्तन के लिए लोग स्वतंत्र, इसके लिए सार्वजनिक सूचना जरूरी

राज्य सरकार के अधिवक्ता ने इन बातों के सत्यापन के लिए कोर्ट से समय मांगा है कि धर्म परिवर्तन शादी के लिए किया गया या वैधानिक प्रक्रिया अपनाकर अपनी मर्जी से किया गया है। इस पर कोर्ट ने मामले में अगली सुनवाई के लिए छह मई की तारीख तय की है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि देश में कोई भी व्यक्ति धर्म बदलने के लिए स्वतंत्र है, बशर्ते कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया हो। कोर्ट ने कहा कि इसके लिए शपथ पत्र और समाचार पत्र में विज्ञापन दिया जाना जरूरी है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि धर्म परिवर्तन से कोई सार्वजनिक आपत्ति नहीं है। यह भी सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि कोई धोखाधड़ी या अवैध धर्म परिवर्तन नहीं है। साथ ही सभी सरकारी आईडी पर नया धर्म दिखाई देना चाहिए। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ ने की।

याची वारिस अली ने कोर्ट में बताया है कि उसने शिकायतकर्ता की बेटी से शादी की है। जिससे उन्हें एक बेटी है। दोनों साथ रह रहे हैं। शिकायतकर्ता ने दुष्कर्म, पॉक्सो एक्ट सहित विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया है। दर्ज मुकदमे को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में वाद दायर किया गया है। याची का कहना है कि उसने अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन किया है।

 

राज्य सरकार के अधिवक्ता इन बातों के सत्यापन के लिए कोर्ट से समय मांगा है कि धर्म परिवर्तन शादी के लिए किया गया या वैधानिक प्रक्रिया अपनाकर अपनी मर्जी से किया गया है। इस पर कोर्ट ने मामले में अगली सुनवाई के लिए छह मई की तारीख तय की है।

प्रदेश में लागू है गैरकानूनी धर्म परिवर्तन अधिनियम

उत्तर प्रदेश में गैरकानूनी धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए अधिनियम 2021 लागू किया गया। यह अधिनियम गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या कपटपूर्ण तरीके से या विवाह द्वारा एक से दूसरे धर्म में गैरकानूनी रूपांतरण पर रोक लगाता है। अधिनियम की धारा 8 के अनुसार धर्म परिवर्तन करने से 60 दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को घोषणा पत्र देना होगा। धारा 9 धर्म परिवर्तन के बाद घोषणा से संबंधित है।

 

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