उत्तर प्रदेशलखनऊ

Magh Mela : संगम की रेती पर दो पीढि़यों का कल्पवास, प्रभु से मिलन की आस में पिता का 39वां साल

सेक्टर तीन के गाटा संख्या-एक पर लगे शिविर में पन्नालाल पिछले 39 वर्षों से कल्पवास कर रहे हैं। इस कड़ाके की ठंड में जमीन पर सोना और भोर में ही गंगा स्नान कर प्रभु का ध्यान लगाना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। वह एक पहर भोजन और तीन पहर स्नान करते हैं।

संगम की रेती पर प्रभु से मिलन की आस में कल्पवास की परंपरा किस कदर पुष्पित हो रही है, इसे वहां के शिविरों में पहुंचकर देखा जा सकता है। यहां इस परंपरा को आगे बढ़ाने में पीढ़ी दर पीढ़ी के संस्कारों का नाता जुड़ा है। कोरांव के देवी बांध गांव निवासी पन्ना लाल पांडेय का परिवार इसका एक उदाहरण है।

सेक्टर तीन के गाटा संख्या-एक पर लगे शिविर में पन्नालाल पिछले 39 वर्षों से कल्पवास कर रहे हैं। इस कड़ाके की ठंड में जमीन पर सोना और भोर में ही गंगा स्नान कर प्रभु का ध्यान लगाना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। वह एक पहर भोजन और तीन पहर स्नान करते हैं।

अपने शिविर से वह सुबह से शाम तक दो बार पैदल संगम स्नान के लिए जाते हैं। सुबह कड़ाके की ठंड के बीच सूर्य की पहली रोशनी के साथ ही वह डुबकी लगाते हैं। फिर दिनभर रामनाम का जप और भागवत कथा सुुनना ही उनकी दिनचर्या में शामिल है। उसके बाद दोपहर और फिर शाम को स्नान कर गंगा की आरती भी वह करते हैं। संकल्प पूछने पर वह ऊपर की ओर हाथ उठाकर आसमान निहारने लगते हैं।

बताते हैं कि जीवन में सबकुछ देख लिया है। मां गंगा हर इच्छा पूरी करती हैं। उन्होंने बताया कि वह पहली बार अपनी बुआ के साथ कल्पवास करने आए थे। इसके बाद से ही वह लगातार माघ मेले में आते रहे हैं। 85 वर्ष की उम्र पार कर चुके पन्ना लाल ने दो बार शैय्या दान भी किया है।

पुत्र ने भी किया पिता का अनुसरण, 23 वर्ष से कल्पवास

 

प्रयागराज। पिता से प्रभावित होकर दूधनाथ पांडेय भी 23 साल से कल्पवास कर रहे हैं। वह बताते हैं कि उनके पिता 16 वर्ष की उम्र से ही गांव वालों के साथ पैदल 70 किमी की यात्रा तय कर संगम स्नान करने आते थे। वह शिविर के एक कोने में श्रद्धा, समर्पण और आस्था के साथ जप, तप, साधना करते हैं। संकल्प के बाद पिता पुण्य के लिए तीन बार गंगा स्नान करते हैं। उनकी इच्छा है कि अगले साल लगने वाले महाकुंभ में वह तीसरी बार भी शैय्या दान करें। दूधनाथ बताते हैं कि जब से मां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का आशीष मिला है तब से जीवन के सभी कष्ट दूर हो गए हैं। हमारी आने वाली पीढ़ी भी इस परंपरा को निभाएगी।

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