उत्तर प्रदेशलखनऊ

Moradabad Lok Sabha Seat : आसान नहीं मुरादाबाद की राह, भाजपा-सपा दोनों के लिए साख का सवाल ‘पीतल नगरी’

नामांकन प्रक्रिया के बाद 12 प्रत्याशी मैदान में हैं। सपा के बार-बार प्रत्याशी बदलने पर प्रत्याशी बदलने को भोजपुर के जाहिद हुसैन उचित नहीं मानते। वे पूछते हैं यदि डा. एसटी हसन को नहीं लड़ाना था तो उन्हें टिकट ही क्यूं दिया? पास ही बैठे अनुज सपा की गुटबाजी का असर आंकड़ों से बताने लगे। बोले 2014 में मुरादाबाद से भाजपा तब जीती जब मुसलमान बंट गया।

मुरादाबाद। पीतल की नक्काशी के बिना मुरादाबाद की बात पूरी नहीं होती। पीतल उत्पादों के निर्यात का यह बड़ा केंद्र है। इसीलिए पीतल नगरी नाम से भी जाना जाता है। इसके विस्तार और विकास की बात जब भी होती है, तो राजनीति पर लोगों की टिप्पणी जरूर सुनाई देती है। हालांकि इस बार मुद्दों से अधिक सपा की गुटबाजी पर चर्चा है।

दोनों पार्टियों के लिए क्यों यह सीट जरूरी?

सपा ने डा. एसटी हसन को उम्मीदवार बनाया था लेकिन अंततः आजम के करीबी रुचिवीरा ही मैदान में आने में कामयाब हैं। सपा के गढ़ में बार-बार टिकट बदलने से यहां की जीत पार्टी मुखिया अखिलेश यादव की साख से जुड़ गई है।

 

वहीं, गृह सीट होने की वजह से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेन्द्र सिंह के लिए पार्टी प्रत्याशी सर्वेश सिंह को जिताना उनकी प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। भाजपा प्रत्याशी सर्वेश सिंह 2009 से लगातार इस सीट से भाग्य आजमा रहे हैं, 2014 में उन्होंने ही यहां से पहली बार भाजपा को जीत दिलाई थी। वह ठाकुरद्वारा से पांच बार विधायक भी रहे हैं।

12 प्रत्याशी मैदान में उतरे 

नामांकन प्रक्रिया के बाद 12 प्रत्याशी मैदान में हैं। सपा के बार-बार प्रत्याशी बदलने पर प्रत्याशी बदलने को भोजपुर के जाहिद हुसैन उचित नहीं मानते। वे पूछते हैं ‘यदि डा. एसटी हसन को नहीं लड़ाना था, तो उन्हें टिकट ही क्यूं दिया?’ पास ही बैठे अनुज सपा की गुटबाजी का असर आंकड़ों से बताने लगे। बोले, 2014 में मुरादाबाद से भाजपा तब जीती, जब मुसलमान बंट गया। 2019 में सपा-बसपा का वोटबैंक एक साथ आने पर सीट सपा के पाले में चली गई। इस बार तीनों पार्टियां आमने-सामने हैं।

रईस मियां इसे आगे बढ़ाते हैं-‘इस बार कांग्रेस जरूर सपा के साथ है, लेकिन उसका अलग वोटबैंक नहीं है। मुस्लिमों को ही वोटबैंक माना जा रहा है।’ दूसरी ओर बसपा ने भी इरफान को इसलिए प्रत्याशी बनाया है कि वह मुसलमानों में सेंधमारी कर सकें।

 

करीब पौने दो लाख अनुसूचित जाति का वोट बसपा को ही मिलेगा? इस बारे में असमंजस की स्थिति है। मुरादाबाद के बुध बाजार में चुनावी चर्चा के दौरान यह बात भी सामने आती है कि प्रधानमंत्री मोदी बड़ा फैक्टर हैं, लेकिन जातिवाद को खत्म नहीं माना जा सकता। खुद पार्टियां ही जातिगत आधार पर गुणा-गणित लगा रही हैं।

टिकट बदलने से सपा में गुटबाजी

सपा ने 2019 की तरह इस बार भी ऐन मौके पर टिकट बदला। पहले सांसद डा. एसटी हसन को टिकट दिया था, लेकिन 26 मार्च को नामांकन कराने के साथ उनका टिकट काट दिया। उहापोह की स्थिति के बाद रुचिवीरा मैदान में हैं। उनका भी सिंबल निरस्त कराने को सपा के शीर्ष नेतृत्व ने पत्र भेज दिया।गनीमत रही, नामांकन अवधि बीत गई और जिला निर्वाचन अधिकारी ने पत्र स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। सिंबल के इस खेल में बड़ा फैक्टर सपा महासचिव आजम खां का भी रहा। वह खुद रुचिवीरा को प्रत्याशी देखना चाहते थे। इससे पार्टी में गुटबाजी हावी है। खुद डा. हसन ने भी मुरादाबाद में प्रचार करने से इन्कार कर दिया है।

 

मुरादाबाद में क्या कहते हैं जातीय समीकरण

20.52 लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर मुस्लिम मत निर्णायक रहते हैं। इनकी संख्या करीब 48 प्रतिशत है। कुशवाह, सैनी और मौर्य मतदाता भी नौ प्रतिशत के आसपास है। अनुसूचित जाति में जाटव भी इतने ही हैं। अन्य पिछड़ी जाति के मतदाता भी सात प्रतिशत के करीब हैं। इसके अलावा वैश्य, ब्राह्मण, ठाकुर, खटीक धोबी, पाल आदि सभी जातियों के मतदाता हैं।

 

सभी को लगाया गले

लोकसभा सीट के मतदाताओं ने बदल-बदलकर नेताओं को गले लगाया। सपा यहां से चार बार जीती है। मुस्लिम मतों के निर्णायक होने की वजह से 11 मुस्लिम सांसद बने हैं। 1952 व 1957 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से रामशरण, 1962 के चुनाव में मुजफ्फर हुसैन, 1967 में जनसंघ के ओम प्रकाश त्यागी, 1971 में जनसंघ के ही वीरेंद्र अग्रवाल, 1977 व 1980 में गुलाम मोहम्मद खां(पहले बार अखिल भारतीय लोकदल, दूसरी बार जनता पार्टी-धर्म निरपेक्ष), 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से हाफिज मोहम्मद सिद्दीक सांसद बने।

 

इसके बाद 1989 और 1991 में फिर गुलाम मोहम्मद खां सांसद बने, लेकिन इस बाद जनता दल से। अगले दो चुनाव 1996, 1998 में सपा के डा. शफीकुर्रमान बर्क, 1999 में अखिल भारतीय लोकतांत्रिक के चंद्रविजय सिंह, इसके बाद 2004 में पुन: डा. शफीकुर्रमान बर्क, 2009 में कांग्रस से भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रहे अजहरुद्दीन, 2014 में भाजपा से सर्वेश सिंह और 2019 में फिर सांसद बदलकर सपा के डा. एसटी हसन को सांसद निर्वाचित किया।

 

वर्ष 2019 का चुनाव परिणाम

 

डा. एसटी हसन(सपा) 50.65 प्रतिशत

 

सर्वेश सिंह (भाजपा) 43.1 प्रतिशत

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button