उत्तर प्रदेशलखनऊ

UP: डीएम के इस आदेश से छूटे कॉन्वेंट और निजी स्कूल संचालकों के पसीने, बढ़ाई गई फीस करनी होगी वापस

मिशनरी हो या फिर अन्य निजी स्कूल फीस, इस कदर बढ़ा दी गई कि अभिभावकों के सामने समस्या खड़ी हो गई। कई बच्चों ने तो स्कूल ही छोड़ दिया। ऐसे में जिलाधिकारी के इन आदेशों से बड़ी राहत मिलेगी

कॉन्वेंट और निजी स्कूलों में फीस बढ़ोतरी और निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें देख अभिभावक परेशान हैं। इनको राहत देने के लिए राज्यसभा सांसद नवीन जैन ने डीएम से कार्रवाई के लिए कहा। उन्होंने पत्र भेजकर अभिभावकों का दर्द बयां किया। तो वहीं जिलाधिकारी ने भी बीएसए, डीआईओएस व स्कूल संचालकों को इस संबंध में स्पष्ट निर्देश दिए हैं।

राज्यसभा सांसद नवीन जैन ने डीएम भानु चंद्र गोस्वामी से कहा है कि निजी स्कूलों में किताब-कॉपियों की बिक्री और फीस को लेकर मनमानी चल रही है। इसके खिलाफ स्कूलों के गेट पर धरना-प्रदर्शन किया जा रहा है। अभिभावक उन्हें लगातार फोन करके शिकायत कर रहे हैं। उन्हें बताया गया है कि सालाना फीस बढ़ाए गए हैं। निजी प्रकाशकों की महंगी किताबों को एक ही पुस्तक विक्रेता से खरीदने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

इसकी जगह एनसीईआरटी की पुस्तकें ही चलाई जाएं। सांसद नवीन जैन ने डीएम से कहा कि स्कूल संचालकों और पुस्तक विक्रेताओं की मिलीभगत के खिलाफ कार्रवाई करें। हर साल यूनिफॉर्म बदलने में कमीशनखोरी की आशंका है। इसे रुकवाया जाए और कोरोना काल में बढ़ाई गई फीस न्यायालय के आदेश पर वापस की गई थी। अनेक स्कूलों ने इसका समायोजन नहीं किया है। उनका समायोजन कराया जाए।

 

 

वापस होगी बढ़ी फीस

जिलाधिकारी भानु चंद्र गोस्वामी ने बताया कि बढ़ी हुई फीस वापस होगी। मनमानी किसी की नहीं चलेगी। बीएसए, डीआईओएस व स्कूल संचालकों को इस संबंध में स्पष्ट निर्देश दिए हैं। अभिभावकों को कोई समस्या है तो वह शिकायत दर्ज कराएं। न्यायोचित समाधान किया जाएगा। लेकिन, किसी संस्था को अराजकता फैलाने की अनुमति नहीं है। स्कूल में धरना-प्रदर्शन नहीं होगा। अन्यथा ऐसे लोगों के खिलाफ भी कठोर कार्रवाई करनी पड़ेगी।

फीस बढ़ी तो छोड़ा स्कूल, सैकड़ों छोड़ने को तैयार

केस 1- पेंटिंग की छोटी सी दुकान चलाने वाले आशीष के दो बच्चे शहर के प्रतिष्ठित कॉन्वेंट स्कूल के छात्र थे। हर साल फीस वृद्धि और साल-दर साल किताबों की बढ़ी कीमतों ने उनके हौसले पस्त कर दिए। मजबूरी में उन्हें अपने बच्चों का प्रवेश एक अन्य स्कूल में कराना पड़ा।

 

केस- 2- पेशे से शिक्षक शैलेंद्र की बेटी शहर के प्रतिष्ठित कॉन्वेंट स्कूल की छात्रा थी। घर में आर्थिक समस्या आई तो फीस भरने में देरी हो गई। प्रिंसिपल ने पहले छमाही और फिर वार्षिक परीक्षा में उसे नहीं बैठने दिया। शैलेंद्र ने किसी तरह रुपये का इंतजाम कर फीस भरी तब भी बेटी परीक्षा नहीं दे सकी। मजबूरी में उन्होंने बेटी का प्रवेश एक अन्य विद्यालय में करवाया।

 

केस 3- बल्केश्वर निवासी रानी के दो बच्चे शहर के प्रतिष्ठित कॉन्वेंट स्कूल के छात्र थे। कोरोना काल में पति की मृत्यु के बाद घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ी, फीस जमा नहीं हो पाई। रानी वस्तुस्थिति से अवगत कराने स्कूल पहुंचीं तो उन्हें जलील किया गया। मजबूरी में बच्चों का दाखिला अन्य विद्यालय में कराना पड़ा।

ये तीन मामले तो उदाहरण मात्र हैं। शहर में अभिभावक व्यापार बनती शिक्षा का बोझ नहीं झेल पा रहे हैं। मजबूरी में उन्हें बच्चों का प्रवेश दूसरे स्कूल में कराना पड़ा। साल दर साल महंगी होती स्कूली शिक्षा ने मध्यम वर्ग का बजट बिगाड़ दिया है। हालात ये है कि सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते अभिभावक खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। दर्जनों अभिभावकोंं ने स्कूल से बच्चों को निकालने की तैयारी कर ली है।

 

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