
राजनीति – काजनीति
अपने ज़ोरिम हुनजै न दल,
दोसरेक ज़ोरिक नाप बताओवै
झांप काज आपन दुखड़ा काय,
और काजेक नुकसान सावै।
रंगाय और डिज़ाइन का औ,
अपना गलत चिन्ह चिन्हावै।
राजनीति चरम सीमा पर है,
काजनीति गे बफ़ेलो चरावै।
अत्याचार पर डरि काय परदा,
मीठ-मीठ बन खोब बतलाय।
जेहके पनीम छुट रहा तब,
अब उनहिक साथे रोटी खाय।
जेहका कबहु मारी भकिस,
अब वे के आगे माथ नवावै।
राजनीति चरम सीमा पर है,
काजनीति गे बफ़ेलो चरावै।
कुल दुविधन का देख के ई,
करत आँख मूंद अनदेखा।
एके फ़र्ज़ कय ख़र्च लाग जौ,
मूडेक फेर बघराय सेखी।
यक अपनी कुरिया खातिर ई,
ब्येन काय कुरिया कुरियावै।
राजनीति चरम सीमा पर है,
काजनीति गे बफ़ेलो चरावै।
साँच झूठ काय मिट गय सरहद,
जनता लूटय के चक्कर मा।
मनुष्य यय भूली काय बैठा,
घुसेड़ के नफा के आकार मा।
मूर्ख बनत जात ही जनता,
औ बेर-बेर ई मूर्ख बनावै।
राजनीति चरम सीमा पर है,
काजनीति गे बफ़ेलो चरावै।
~शिवकांत पाल ‘शिवू’
(@shivu_kp_awadh)
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