उत्तर प्रदेशलखनऊ

Ram Mandir: क्या भाजपा ने कांग्रेस को ‘धर्म संकट’ में फंसा दिया? पार्टी इस अंदाज में दे रही विरोधियों को जवाब

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पॉलिटिकल सेंटर फॉर स्ट्रेटजी एंड ऑब्जरवेशन के संयोजक चंद्र प्रकाश ओहरी कहते हैं कि अगर भाजपा और संघ की ओर से कांग्रेस को निमंत्रण न दिया जाता, तो कांग्रेस पार्टी यह कहकर माइलेज ले सकती थी कि उनको आमंत्रित नहीं किया गया। इसलिए वह कार्यक्रम में नहीं जा रहे हैं। लेकिन जब कांग्रेस को निमंत्रण दिया, तो एक तरह से उन्हें धर्म संकट में फंसाने जैसा हो गया…

अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में कांग्रेस के बड़े नेता शिरकत नहीं करेंगे। हालांकि कांग्रेस ने भेजे गए इस निमंत्रण को अस्वीकार करने के कई कारण गिनाए हैं। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस शासित कर्नाटक सरकार प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन तय वक्त में सभी मंदिरों में घंटे और शंख बजाकर राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के दौरान विशेष कार्यक्रम आयोजित कर रही है। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि आखिर राम जन्मभूमि परिसर का ताला खुलवाने से लेकर राम मंदिर के शिलान्यास की अनुमति देने वाली कांग्रेस के नेताओं ने आखिर राम मंदिर के शुभारंभ में जाने से परहेज क्यों किया? सियासी गलियारों में कहा यही जा रहा है राम मंदिर शुभारंभ में बड़े नेताओं को निमंत्रण देकर धर्म संकट में फंसा दिया। हालांकि कांग्रेस ने भी निमंत्रण अस्वीकार करने के पीछे जो कारण गिनाए हैं, उसे उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं और गठबंधन के सहयोगियों को एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की है।

कांग्रेस नेताओं की ओर से राम मंदिर शुभारंभ में न जाने को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर कहते हैं कि कांग्रेस को जनता सबक सिखाएगी। पूरे देश में प्रभु राम के आने का जश्न मनाया जा रहा है। लेकिन कांग्रेस इसमें अलग ही सियासत देख रही है। जबकि राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण स्वीकार न करने पर कांग्रेस के नेता जयराम रमेश कहते हैं कि यह भाजपा का एक राजनीतिक प्रोजेक्ट है। धर्म एक निजी मामला है। जबकि भारतीय जनता पार्टी और संघ ने अयोध्या में इसे एक राजनीतिक परियोजना बना दिया है। संघ और भाजपा संगठन अधूरे मंदिर का उद्घाटन कर रहे हैं। यह सब चुनाव के लिए हो रहा है। सियासी जानकारों का कहना है कि कांग्रेस एक ओर तो अयोध्या में न जाने का फैसला ले रही है, वहीं दूसरी ओर अपने ही कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक में प्राण प्रतिष्ठा के दौरान मंदिरों में विशेष आयोजन की तैयारी का निर्देश दे रही है।

 

‘पॉलिटिकल सेंटर फॉर स्ट्रेटजी एंड ऑब्जरवेशन’ के संयोजक चंद्र प्रकाश ओहरी कहते हैं कि अगर कांग्रेस की सियासत को आप राजीव गांधी के दौर से देखें, तो पाएंगे कि उनका अयोध्या और राम मंदिर से गहरा नाता रहा है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर जब अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार हो गया और इसका शुभारंभ होना है, तो कांग्रेस के बड़े नेताओं की ओर से इसमें शामिल होने के लिए मना क्यों किया गया। ओहरी कहते हैं कि अगर भाजपा और संघ की ओर से कांग्रेस को निमंत्रण न दिया जाता, तो कांग्रेस पार्टी यह कहकर माइलेज ले सकती थी कि उनको आमंत्रित नहीं किया गया। इसलिए वह कार्यक्रम में नहीं जा रहे हैं। लेकिन जब कांग्रेस को निमंत्रण दिया, तो एक तरह से उन्हें धर्म संकट में फंसाने जैसा हो गया। अब अगर कांग्रेस इस कार्यक्रम में जाती तो भी संकट था और अब नहीं जा रही है, तो सियासी तौर पर भाजपा ने इसे मुद्दा बना लिया। हालांकि ओहरी का कहना है कांग्रेस ने इस कार्यक्रम में शामिल न होने के जो कारण गिनाए हैं, उनमें से कई तर्क तो शंकराचार्य की ओर से भी सामने आए हैं।

 

राजनीतिक विश्लेषण ओपी तंवर कहते हैं कि भाजपा की ओर से भले ही कांग्रेस को धर्म संकट में फंसाने जैसी स्थिति कही जा रही हो, लेकिन कांग्रेस की ओर से भी इस पूरे मामले में सधा हुआ सियासी दांव भी माना जा रहा है। वह कहते हैं कि कांग्रेस के नेता राम मंदिर के शुभारंभ पर अयोध्या न जा रहे हो, लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों के मंदिरों में बड़े आयोजन की तैयारी तो चल ही रही है। कर्नाटक सरकार ने मंदिरों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाने के निर्देश जारी किए हैं। मुजरई मंत्री (हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती) रामलिंगा रेड्डी कहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा। इसलिए हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती विभाग से कहा है कि 22 जनवरी को मंदिरों में विशेष आयोजन और पूजा अर्चना हो। तंवर कहते हैं कि कर्नाटक सरकार की ओर से मंदिरों में आयोजन इस बात की तस्दीक करते हैं कि कांग्रेस ने अयोध्या में जाने से तो परहेज किया, लेकिन मंदिरों में अपनी-अपनी आस्था के अनुरूप न कार्यक्रम को रोका है और न ही अपने कार्यकर्ताओं को इसके लिए कोई दिशा निर्देश दिए हैं।

 

वरिष्ठ पत्रकार बृजेंद्र शुक्ला कहते हैं कि 1989 में राजीव गांधी ने राम मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दी। तब उसे वक्त के तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह को भी शिलान्यास शामिल होने के लिए भेजा गया था। शुक्ल कहते हैं कि हालांकि कांग्रेस के लिए यह फैसला उस वक्त सियासी तौर पर नुकसानदायक साबित हुआ। शिलान्यास के बाद कांग्रेस की कुछ राज्यों में करारी हार भी हुई थी। शुक्ल कहते हैं कि बावजूद उसके कांग्रेस पार्टी ने कभी भी खुलकर राम, राम मंदिर और आस्था के विरोध में कभी कोई बात नहीं कही। बल्कि जब 2020 में भूमि पूजन हुआ, तो कांग्रेस के ही नेता ने इसे राष्ट्रीय एकता का कार्यक्रम भी बताया था। उनका मानना है भाजपा कांग्रेस को जरूर इस मुद्दे पर घेर रही है, लेकिन कांग्रेस के पास ऐसे तमाम और भी तर्क हैं, जो यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि उनका राम और राम मंदिर से विरोध नहीं है। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव जयराम रमेश कहते हैं कि धर्म आस्था नितांत निजी मामला है। क्योंकि भाजपा इसका राजनीतिकरण कर रही है इसलिए उन्होंने इसे अस्वीकार किया है।

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