मनोकामना देवी के मंदिर में पूरी होती है हर मनोकामना
मनोकामना मन्दिर में आते थे पृथ्वीराज चौहान पूजा करने

जस्ट एक्शन संवाददाता
ब्यूरो चीफ मनसाफ कुमार
संभल। ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व की नगरी में स्थित 68 तीर्थो में एक तीर्थ मणिकर्णिका तीर्थ है, जो शहर के मध्य में स्थित है। यहां मनोकामना देवी मां का पौराणिक मंदिर है। आम तौर पर इसे मनोकामना तीर्थ के नाम से जाना जाता है और इसी नाम से प्रसिद्ध भी है। दिल्ली समेत कई राज्यों के भक्तजन यहां आते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार अनादिकाल से स्थापित इस तीर्थ में भगवान राम, शिव जी की मूर्ति की स्थापना की गई थी। साथ ही कुंड बनवा दिया गया है।
तीर्थ की मनोकामना देवी का मंदिर मुख्य है। देखरेख करने वाले ट्रस्ट के प्रबंधक तीर्थ की दक्षिण दिशा में 2500 वर्ष माधव मिश्रा ने बताया कि त्योहारों पुराना गंगा मइया का पौराणिक मंदिर और पर्वो पर स्नान के लिए पानी है। मान्यता है कि यहां से कभी गंगा भरा जाता है। दीपावली के चौथे दिन की अवरिल धारा बहती थी। फेरी का मेला लगता है। अन्नकूट, किंवदंती यह भी है कि एक बार जन्माष्टमी, रामनवमी आदि के आकाश मार्ग शिव-पार्वती के जोड़े अवसरों पर भंडारा, प्रसाद वितरण से जा रहे थे। मां पार्वती के कान की आदि किए जाते हैं। मान्यता है कि मणि यहां गिरी थी। तभी से इस तीर्थ मनोकामना देवी के दरबार में निरंतर की उद्गम हुआ। नाम मणिकर्णिका 40 दिन तक दीया जलाने से तीर्थ पड़ा। बाद में मनोकामना पूर्ण मनचाही मनोकामना पूरी होती है। होने लगी तो इसका नाम मनोकामना पृथ्वीराज चौहान भी मंदिर तीर्थ पड़ गया।
वर्ष 1980 के बाद मनोकामना देवी की पूजा करने आते उक्त तीर्थ का जल लुप्त हो जाने के थे। कई हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस बाद मंदिर प्रबंधक द्वारा पुराने तीर्थ तीर्थ की देखरेख ट्रस्ट प्रबंधक के मध्य भाग में गोलाकार पक्का माधव मिश्रा करते हैं।
- सुबह में चार बजे मां का मंदिर खुल जाता है। दोपहर 12 बजे कपाट बंद हो जाते हैं। नवरात्र में बड़ी संख्या में भक्त पहुंच रहे हैं। सुबह में आने वाले भक्तों को दोपहर हो जाती है। इस तीर्थ पर आकर 40 दिन तक लगातार दीप जलाने से हर मनोकामना पूरी होती है।
– पंडित उमेश भारद्वाज, पुजारी, मनोकामना तीर्थ, संभल