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पौराणिक कथाओं का वर्तमान रूपांतरण: डॉ. मोनिका रघुवंशी

पौराणिक कथाओं का औचित्य

पौराणिक कथाओं का औचित्य लोगों में सकारात्मक सोच जागृत कर प्रत्येक विकट समस्या से उभारना व प्रसन्नता प्रदान करना है। प्राचीन लोगों को ज्ञात था की समय सदैव हमें नई-नई परेशानियों से सामना कराता है ऐसे में हार ना मानकर दृढ़ता से उसका सामना करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए पौराणिक कथाओं का बार-बार पाठ होता है।

नवरात्रि विशेष दुर्गा माता की कथा में असुरों से त्रस्त संसार की रक्षा हेतु दुर्गा देवी स्त्री रूप में असुरों का हनन कर समाज की रक्षा करती हैं। इस कथा का संतों ने बार-बार उल्लेख समाज में सकारात्मक सोच जागृत करने हेतु किया। कलयुग में हम प्रतिदिन विकट समस्याओं का सामना करते हैं ऐसे में हमें एक विश्वास जागृत होता है की देवी सदैव अच्छे कर्म वालों की रक्षा करती हैं।

प्राचीन कथाओं के असुर आज के समाज में व्याप्त नकारात्मक भाव जैसे की लोभ, मद, मोह, काम व क्रोध हैं। लोभ से तात्पर्य है लालच, मद से तात्पर्य है अहंकार, मोह से तात्पर्य है भावुक दृष्टिकोण व सांसारिक इच्छाएं, काम से तात्पर्य है कामुक भाव व क्रोध से तात्पर्य है असंयमित व्यवहार।

कलयुग के वर्तमान समय में लोभ, मद, मोह, काम व क्रोध अदृश्य असुरों के रूप में संसार को त्रस्त कर रहे हैं। पौराणिक कथाओं से हमें प्रेरणा मिलती है कि संयम से संसार में व्याप्त इन असुरों का दृढ़ता से सामना करें। इन अदृश्य असुरों पर विजय हासिल करने हेतु हमारे अंदर भी अदृश्य अस्त्र व्याप्त हैं जिनका आभास संतों ने समय-समय पर किया है।
लोभ पर विजय प्राप्त करने हेतु आवश्यक है संतुष्ट जीवन व्यतीत करना। स्वयं के कठिन परिश्रम से प्राप्त किए सांसारिक सुख संसाधन में प्रसन्न रहना। मद पर विजय हासिल करने हेतु हमें सौहार्दता से प्रेमपूर्वक रहना चाहिए। कठिन परिस्थितियों में एक दूसरे के साथ खड़े होना चाहिए ना की द्वेष के भाव रखने चाहिए।

मोह पर विजय प्राप्त करने हेतु हमें सदैव सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए व स्वजनों को भी सत्य का मार्ग प्रकाशित करना चाहिए। सत्कर्मों से हम मोह जनित संसार से मुक्ति पा सकते हैं। स्वयं के भावों पर नियंत्रण रखना चाहिए अर्थात दुख में अधिक दुखी ना होना व सुख में अत्यधिक सुखी ना होने से हम मोह जाल से उबर सकते हैं। काम पर विजय प्राप्त करने हेतु सदैव नारी का सम्मान करना चाहिए व नारियों के प्रति गलत दृष्टिकोण न रखकर सदैव उनकी रक्षा में तत्पर रहना चाहिए। क्रोध पर विजय हासिल करने हेतु सदैव संयम से काम लेना चाहिए।

इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि कलयुग के अदृश्य असुर लोभ पर विजय हासिल करने हेतु इच्छाओं पर नियंत्रण हमारा अंदरूनी अस्त्र है। अदृश्य असुर अहंकार पर विजय हासिल करने हेतु प्रेम भाव हमारा अंदरूनी अस्त्र है। मोह नामक असुर पर विजय हासिल करने हेतु संभाव का दृष्टिकोण हमारा अंदरूनी अस्त्र है। काम पर विजय हासिल करने हेतु नारी सम्मान भाव हमारा अंदरूनी अस्त्र है। क्रोध नामक असुर पर विजय हासिल करने हेतु संयम हमारा अंदरुनी अस्त्र है।

कलयुग का समय विकट समस्याओं से भरा है जिसमें प्रत्येक जीव कठिनाइयों का सामना कर रहा है, ऐसी स्थिति में हमें एक दूसरे की परेशानी को समझते हुए लोभ, मद, मोह, काम व क्रोध पर यथाशक्ति नियंत्रण के प्रयास करते हुए एक दूसरे की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।

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